कवितावार में इवान तुर्गेनेव की कविता ::
अनुवाद : योगेंद्र आहूजा

इवान तुर्गेनेव

जीवन का एक नियम

‘‘अगर तुम चाहो किसी विरोधी की ख़ूब धुनाई करना, यहाँ तक कि नुक़सान पहुँचाना’’ एक उम्रदराज़ धूर्त और मक्कार ने मुझसे कहा, “उस पर उसी बुराई का इल्ज़ाम लगाओ जिसके बारे में पक्का जानते हो कि वह ख़ुद तुम्हारे भीतर मौजूद है. क्रोध से धधकते हुए, हिक़ारत के साथ.’’

“सबसे पहले, दूसरों को लगेगा कि तुम उस बुराई से पाक-साफ़ हो. फिर, तुम्हारा क्रोध असली भी हो सकता है. तुम्हारी आत्मा की मरोड़ों में जो पहले से मौजूद है, उसी को इस्तेमाल कर सकते हो.”

“अगर तुम, उदाहरण के लिए, पाला पलटने में माहिर हो तो उस पर इल्ज़ाम लगाओ ढुलमुलयक़ीनी का.”

“अगर ख़ुद तुम्हारे भीतर एक ग़ुलाम आत्मा है तो उसे हिक़ारत से कहो कि वह ग़ुलाम है. ग़ुलाम …सभ्यता का, यूरोप का, समाजवाद का.”

“यह भी कहा जा सकता है कि ग़ुलामी के विरोध का, आज़ादी का ग़ुलाम.” मैंने टीप लगाई.

“ऐसा भी कर सकते हो तुम’’, धूर्त ने सिर हिलाया.

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इवान तुर्गेनेव (9 नवंबर 1818-3 सितंबर 1883) कालजयी रूसी साहित्य के रचयिताओं में से एक हैं. उनकी ख्याति उनके उपन्यासों और कहानियों की वजह से है, लेकिन उन्होंने कविताएँ भी लिखी हैं. यहाँ प्रस्तुत कविता अँग्रेज़ी से अनूदित है और हिंदी अनुवाद के लिए ‘पोएम हंटर’ से ली गई है. योगेंद्र आहूजा हिंदी के सुपरिचित कथाकार हैं. उनके दो कहानी-संग्रह प्रकाशित हैं. उनसे ahujayogendra@gmail.com पर बात की जा सकती है.

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