रने शार की कविताएं ::
फ्रेंच से अनुवाद : रीनू तलवाड़

rene char poem
रने शार, 14 जून 1907 – 19 फरवरी 1988

निष्ठा

देखो उमड़ता है मेरा प्यार शहर की गलियों में. परवाह नहीं विभाजित समय में वह कहां जाती है. अब नहीं रही वह मेरी प्रियतमा, हर कोई कर सकता है अब उससे बात. उसे तो यह भी याद नहीं रहा कि आखिर उसे प्रेम करता कौन था.

आसक्त आंखों में वह ढूंढ़ती फिरती है अपना जोड़ीदार. जिस प्रसार को वह नापती है अपने कदमों से, मेरा अनुराग है. वह उम्मीद जगाती है, हौले-से फिर उड़ा देती है उसको. बिना भाग लिए अपना वर्चस्व बनाए रखती है.

मैं जीता हूं उसकी गहराइयों में एक मग्न डूबी नौका-सा. वह नहीं जानती कि मेरा अकेलापन है उसकी अज्ञात निधि. उसकी उड़ान से जुड़ी मध्याह्न रेखा में गहरा खोदती है मेरी आजादी.

देखो उमड़ता है मेरा प्यार शहर की गलियों में. परवाह नहीं विभाजित समय में वह कहां जाती है. अब नहीं रही वह मेरी प्रियतमा, हर कोई कर सकता है अब उससे बात. उसे तो यह भी याद नहीं रहा कि आखिर उसे प्रेम करता कौन था. और कौन करता है दूर से ही उसकी राहें रोशन ताकि वह गिर न पड़े?

हवा का विदा लेना

गांव की पहाड़ी ढलानों पर पड़ाव डाले हुए खेमे हैं छुई-मुई के.
कटाई के समय, दूर से ही
होगी तुम्हारी महकती मुलाकात एक लड़की से
उठाती रही हैं दिन-भर
जिसकी बांहें वे नाजुक टहनियां. जैसे एक दिया
जिसकी रोशनी का तेजमंडल सुगंध हो,
वह चली जाएगी, डूबते सूरज की ओर पीठ किए.

उससे बात करना कुफ्र होगा

घास को हल्के-से स्पर्श करती जूती, रास्ता दो उसे.
संभव है देख पाओ तुम
रात की नमी की झलक उसके होंठों पर

जंजीर

पराजय के घुमावदार आकाश तले
जल रही है गठबंधनों की महाचिता
अपनी सड़ चुकी नाव में फिरता हुआ यह जाड़ा है
ठोस प्रेमी हों या तरल प्रेमिकाएं
पेड़ों तले, धरती की रिक्त गहराइयों में
बिछी हैं मृत्यु शैय्याएं
टहनियों की मेहराबें गढ़ रही हैं पंखों की नई खेप
जुते हुए खेत मानो जगमगा रहे हैं
पूज रहे हैं पसीने में नहाए चिकित्सकों को
जिन्हें प्रारब्ध में विश्वास है उनकी पुआल पर
बह रह है तारों का प्रज्ज्वलित झाग
ऐसी कोई अनुपस्थिति नहीं जो अपूरणीय हो

टोकरी बुनने वाले की प्रेमिका

मैं तुम से प्रेम करता था. मुझे प्रेम था तुम्हारे चेहरे से जिस पर खींच दी थीं तूफानों और बारिशों ने आड़ी-तिरछी रेखाएं और तुम्हारे होंठों के उस शून्य से जो करता था मेरे चुंबन की मुहरबंदी. कुछ लोग करते हैं विश्वास भ्रमों के गोल-गोल बुलबुलों में. मेरे लिए चलते रहना काफी है. गहरी उदासी से मैं लेकर लौटा हूं एक इतनी छोटी टोकरी, प्रिय, जिसे सींकों से बुना गया था.

***

‘फ्यूरर ए मिस्तेर’ (Fureur et Mystère) शीर्षक संचयन से मूल फ्रेंच से अनूदित. रीनू तलवाड़ सुपरिचित हिंदी लेखिका, अनुवादक और अध्येता हैं. चंडीगढ़ में रहती हैं. उनसे reenutalwar@gmail.com पर बात की जा सकती है. यह प्रस्तुति ‘सदानीरा’ के 18वें अंक में पूर्व-प्रकाशित.

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