बेजान मातुर की कविताएँ ::
तुर्की से अनुवाद : निशांत कौशिक

बेजान मातुर

अगर यह कोई शोक-काल है

वे ऐसी एक ज़मीन की बात करते हैं
जो कभी थी ही नहीं
एक नापैद ज़ुबान की
भाईचारे की
गुफ़्तगू की
अलफ़ाज़ की

दुनिया को समझने का बीड़ा उठा भी लें
तो फिर कौन समझाएगा मृत्यु हमें
कौन समझाएगा कि कैसे साँस लेते हैं पहाड़?
भरभराकर गिरते अँधेरे को
कौन समझाएगा?
क्या दफ़्न है, बच्चे के सपने के भीतर?
किसे पता?

किसी प्राचीन कथा में क़ैद
परिंदों के पंख
मेरे तन-बदन से निकलने को आमादा हैं
तन, पत्थर की मानिंद है—
कहा करती थीं गुज़रे ज़माने की औरतें

यह तय है कि इक नौहागर1शोक करने वाले/रुदाली। हूँ मैं
पहाड़ों के उस ओर
जब अँधेरा घिर आता है
जिस शक्ल को याद करूँ
मुझे तकलीफ़ भरी आँखों से देखती थी

अगर यह कोई शोक-काल है
तो रोना अभी शुरू भी नहीं हुआ है।

साया

पहाड़ों की मख़मली छाया
विस्मृति
और कुछ नहीं
घाटियों की गुनगुनाहट
मेरा दुखता दिल
हम लौट रहे हैं अपनी बुनियाद,
अपनी जड़ों की ओर
अपनी नस्लों और क़बीलों के इतिहास में अकेले

पहाड़ों पर
जिससे हम वाबस्ता हैं
अतीत की उदासी है
हमारी नहीं।

***

निशांत कौशिक हिंदी कवि-अनुवादक हैं। वह जामिया मिल्लिया इस्लामिया से तुर्की भाषा में स्नातक हैं। तुर्की से उनके अनुवाद में अदीब जानसेवेर, जमाल सुरैया और तुर्गुत उयार की कविताएँ ‘सदानीरा’ पर समय-समय पर शाया होती रही हैं। वह इन दिनों बेंगलुरु में रह रहे हैं। उनसे kaushiknishant2@gmail.com पर बात की जा सकती है। तुर्की लेखिका बेजान मातुर (जन्म : 14 सितंबर 1968) की यहाँ प्रस्तुत कविताएँ निशांत कौशिक ने ‘सदानीरा’ को प्रकाशन के लिए इस पत्र के साथ भेजी हैं :

ये दो नई कविताएँ हैं। उचित समझें तो प्रकाशित करें। बेजान मातुर हिंदी में पहली दफ़ा अनूदित हुई हैं। अनुवाद के साथ मूल कविताएँ भी हैं, क्योंकि ये अलग-अलग स्रोतों से ली गई हैं, जिसमें कई दफ़ा आधी अपलोडेड किताबों के चंद पन्ने ही visible थे, इसलिए लिंक देना अनावश्यक है।

बेजान मातुर तुर्की तथा मध्य-पूर्व में लिखी जा रही आधुनिक कविता में एक अनूठी आवाज़ हैं। तुर्की के कह्रमानमाराश प्रांत में एक कुर्दी परिवार में पैदा हुई बेजान मातुर के लेखन-संसार में राजनीतिक मामलों से लेकर तुर्की की हज़ार साल की तसव्वुफ़ परंपरा के संदर्भ, धार्मिक-अधार्मिक, इस्लामी, बुतपरस्ती आदि के प्रतीक मौजूद हैं। उन्होंने कुर्दी-आर्मेनियन समस्याओं पर भी अनेक महत्वपूर्ण आलेख लिखे और साक्षात्कार लिए हैं।

मूल कविताएँ ::

Bir ağıtsa bu

Olmayan bir ülkeden söz ediyorlar
Olmayan dilden, kardeşlikten.
Konuşma yok
Yok kelimeler.

Anlaşılmak içinse yeryüzü
Kim ölümü anlatacak
Dağların aldığı nefesi
Çöken karanlığı
Kim anlatacak,
Bir çocuğun rüyasında büyüyenleri
Kim?

Kuşların kanatları
Eski bir masaldan bana doğru çırpınıyor
Eski kadınların anlattığı
Tenin taşa yakınlığı.

Belli ki bir ağıtçıyım ben,
Karanlık çöktüğünde
Dağların ötesinde
Kimi ansam bakıyor bana acıyla.

Bu bir ağıtsa
Ağlamak henüz başlamadı.

Gölge

Mor dağların gölgesi
Ve unutkanlık
Daha fazlası yok,
Vadilerin uğultusu
Ve ağrıyan kalbim.
Asıl şimdi
Başa dönüyoruz
Aşiret ve soy tarihinde yalnız,
Bu dağ başında
Bulduğumuz hüzün
Bizim değil
Geçmişin.

***

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