शमशेर बहादुर सिंह के कुछ उद्धरण ::

Shamser Bahadur Singh hindi poet
शमशेर बहादुर सिंह

कवि का कर्म अपनी भावनाओं में, अपनी प्रेरणाओं में, अपने आंतरिक संस्कारों में, समाज-सत्य के मर्म को ढालना—उसमें अपने को पाना है, और उस पाने को अपनी पूरी कलात्मक क्षमता से पूरी सच्चाई के साथ व्यक्त करना है, जहाँ तक वह कर सकता हो।

कला कैलेंडर की चीज़ नहीं है। वह कलाकार की अपनी बहुत निजी चीज़ है। जितनी ही अधिक वह उसकी अपनी निजी है, उतनी ही कालांतर में वह औरों की भी हो सकती है—अगर वह सच्ची है, कला-पक्ष और भाव-पक्ष दोनों ओर से। वह ‘अपने-आप’ प्रकाशित होगी। और कवि के लिए वह सदैव कहीं न कहीं प्रकाशित है—अगर वह सच्ची कला है, पुष्ट कला है।

प्रकाशन-प्रदर्शन औसत-अक्षम कलाकार को खा जाता है।

कविता में सामाजिक अनुभूति काव्य-पक्ष के अंतर्गत ही महत्वपूर्ण हो सकती है।

भाषा की जान होता है मुहावरा।

काव्य-कला समेत जीवन के सारे व्यापार एक लीला ही हैं—और यह लीला मनुष्य के सामाजिक जीवन के उत्कर्ष के लिए निरंतर संघर्ष की ही लीला है।

प्रभाव सभी कवियों और कलाकारों पर पड़ते हैं।

…शामों की झुरमुट में, जब पच्छिम के मैले होते हुए लाल-पीले-बैंगनी रंग हर चीज़ को लपेटकर अपने गहरे मिले-जुले धुँधलके में खोने-सा लगते हैं—आपने क्या उस वक़्त कभी ध्यान दिया है कि कैसे हर चीज़ एक ही ख़ामोश राग में डूबने लगती है…? वक़्त के बहते हुए धारे में एक ठहराव-सा आता महसूस होता है… उस अजीब-से शांति के क्षण में कहीं दूर उदासी की घंटी-सी बजती हुई सुनाई देती है।

अगर कविता (जिसे कहते हैं) ‘जीवन से फूटकर’ निकलती है, तो उसमें जीवन की सारी बेताब उलझनें और आशाएँ और शंकाएँ और कोशिशें और हिम्मतें कवि के अंदर की पूरी ईमानदारी के साथ अपने सरगम के पूरे बोल बजाने लगेंगी।

अनोखी और अजीब और नई चीज़ें ज़रूरी नहीं कि बेशक़ीमती भी हों। वह परखने पर हल्की और घटिया, बल्कि सुबह की शाम बासी भी हो सकती हैं—एकदम बासी।

क्यों—क्यों हम एक सरल प्लॉट अपने जीवन का नहीं बना सकते? विश्वव्यापी घटनाएँ हरेक के जीवन में आ गई हैं।

आगे का कलाकार मेहनतकश की ओर देखता है।

सारी कलाएँ एक-दूसरे में समोई हुई हैं, हर कला-कृति दूसरी कलाकृति के अंदर से झाँकती है।

…जो कविता का विकास होता है, वो रचना की अपनी शर्तों पर होता है।

भाषा की अवहेलना किसी भी रचना को सहज ही साहित्य के क्षेत्र से बाहर फेंक देती है और शिल्प की अवहेलना कला के क्षेत्र से।

कविता को उस तरह नहीं रिवाइज़ किया जा सकता, जैसे किसी निबंध या स्पीच को।

निरा संयोग दुनिया में कुछ नहीं होता।

अर्थ प्राणों में समाता है, निकलता नहीं।

एक तरह से हर कवि अपने आपको कम-ओ-बेश फ़ुलफ़िल करता है। वह अपनी unique quality को discover करता है। साहित्य, साधना का मार्ग है।

●●●

शमशेर बहादुर सिंह (13 जनवरी 1911-12 मई 1993) हिंदी के समादृत कवि-लेखक हैं। यहाँ प्रस्तुत उद्धरण रंजना अरगड़े द्वारा संपादित शमशेर बहादुर सिंह रचनावली से चुने गए हैं।

प्रतिक्रिया दें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *