पाठ ::
अर्मान्दो ओरोजको तोवार
अनुवाद : पल्लवी प्रसाद

हावियर हिरॉद

मैं 49 वर्षों बाद आखिरकार हावियर हिरॉद को स्वयं अपनी आंखों से देख पाया हूं. दो तस्वीरों में जो एक ऑनलाइन आलेख के साथ प्रकाशित हुई हैं, एक जो उन्हें जीवित दर्शाती है और दूसरी मृत.

मैं उस युवा कवि के बारे में बात कर रहा हूं जिसके बारे में हमने सर्वप्रथम तब जाना, जब उसे गोली से मारे जाने के बाद, पेरू के प्रकाशक पीजा (Piesa) द्वारा प्रकाशित किताब में उन्हें पढ़ा गया, जैसा कि किताब का शीर्षक पृष्ठ बतलाता है ‘कई आर्थिक और संपादकीय प्रयासों’ के बाद.

काव्य विस्तार पोयशास् कोमप्लितास् आइ कार्तास् (Poesias completas y cartas – संपूर्ण काव्य रचनाएं और पत्र) में पेरू के बुद्धिजीवी लेखक सबास्तियान सलासार बोन्दी (Sebastian Salazar Bondi) द्वारा लिखित प्रस्तावना प्रिमेरा आइ उल्तीमा नोतीसिया दे हावियर हिरॉद (Primera y ultima noticia de Javier Heraud – हावियर हिरॉद के प्रथम और आखिरी शब्द) है और वह इस युवा कवि के संपूर्ण काव्य को पेश करती है. यह संस्करण साथ ही यह दावा भी करता है कि उसे सांस्कृतिक उन्नति की अभिलाषी पेरू की क्रांतिकारी सरकार का नैतिक एवं अनंतिम सहयोग प्राप्त है.

यह विडंबना है कि जिस सैनिक संस्थान ने हिरॉद का कत्ल किया उसने ही वर्षों बाद उनकी रचनाओं को प्रकाशित किया. हालांकि तब वाम-पक्षी सैनिक सरकार द्वारा शासित परिस्थितियां बदल गई थीं. पेरू की सरकार ने 21 वर्षीय कवि के कत्ल के 13 वर्ष बाद 15 मई 1963 को उनका रचना-समग्र निकाला, माद्रे दे दिओस् (Madre de Dios) नदी के तट पर स्थित शहर प्युर्तो माल्दनादो (Puerto Maldanado) में, जो अब उनका नाम धारण करेगा. कवि को नग्नावस्था में निहत्थे ही नदी की धार संग बहती एक डोंगी पर लाया गया था जो किसी पेड़ के तने को काटकर बनाई गई थी. उन्होंने अपनी सफेद कमीज लहराकर इशारा कर अपने बंधकों से गोली न मारने की याचना की थी.

हावियर हिरॉद का जन्म 19 फरवरी को मिराफ्लोरेस् (Miraflores) के शहर में हुआ था. वह छह भाइयों के बीच तीसरे थे. उन्होंने अपनी काव्य-शिक्षा लीमा के कैथलिक विश्वविद्यालय के साहित्य विभाग से आरंभ की, यहीं उन्हें अपने देश की बदहाली का ज्ञान हुआ. मानो उन्हें आने वाले वक्त का पूर्वाभास था, उनकी रचना एल रियो (El rio – एक नदी) सन् 1960 में क्वादर्नोस् दे हॉन्तनार (Cuadernos de Hontanar) में प्रकाशित हुई. इसके परिचय में अन्तोनियो महचादो (Antonio Machado) ने यह सूक्ति लिखी है :

जीवन एक विस्तृत नदी की तरह बहता है.

इसके बाद उन्होंने अपनी एक और किताब एल वियाहे (El viaje – एक यात्रा) के नाम से निकाली.

सन् 1961 में कवि ने मेलिटन कार्वाहल (Meliton Carvajal) स्कूल में साहित्य के शिक्षक के रूप में कार्यारंभ किया. उसी वर्ष वह वर्ल्ड फेस्टिवल ऑफ यूथ एंड स्टूडेंट्स में भाग लेने मॉस्को गए. फेस्टिवल खत्म होने के बाद वह तत्कालीन यू.एस.एस.आर. में भ्रमण करते रहे जिसके बाद वह अपने हमवतन सीजर वालेहो (Cesar Vallejo) की कब्र देखने पेरिस चले गए.

हिरॉद की किताब एस्तासियोन रियूनीदा (Estacion reunida – मौसम का पुनर्मिलन) सैन मार्कॉस् फेडेरेशन द्वारा आयोजित फ्लोरल गेम्स नामक प्रतियोगिता में विजयी रही. इसे दो भाग में प्रकाशित किया गया था – अलाबान्ज़ा दे लॉस दियास् आइ एस्तासियोन देस देसिकान्त (Alabanza de los dias y Estacion des desecanto – विरक्ति के दिवसों की प्रशंसा में) और एन एस्पेरा देल ओतोनो (En espera del otono – शरद का इंतजार). सन् 1962 में कवि को क्यूबा जाकर सिनेमा का अध्ययन करने के लिये अनुदान मिला.

मालूम होता है कि कैरेबियन द्वीप पर वक्त गुजारने के बाद वह, कवि लुई दे ला पुएन्ते उसेदा (Luis de La Puente Useda) के नेतृत्व वाली नेशनल लिबरेशन आर्मी में भर्ती हो गए और उन्होंने रॉद्रिगो महचादो (Rodrigo Machado) का छद्म नाम धारण कर ब्राजील के सीमावर्ती पेरू के जंगलों में लड़ाई लड़ी.

नग्न और निहत्थे कवि को सेना ने घेर लिया था. वह चिल्लाए थे, ‘‘गोली मत मारो!’’ हावियर हिरॉद की याचना का सैनिकों ने उत्तर दिया, ‘‘फायर!’’

हावियर हिरॉद की क़ब्र

काव्य कला

सच्चाई से
सच बयान करता हूं
कविता एक मुश्किल काम है
जिसमें सफल या विफल होते हैं हम
अपने शारदीय वर्षों की ताल पर
हम जब जवान हैं
और झरे हुए फूल चुने नहीं गए
हम लिखते और लिखते जाते हैं रात पर रात
और कभी सैकड़ों के सैकड़ों
कोरे कागज बेकार भरे जाते हैं
हम डींगें मार पाते हैं
‘‘मैं बिना सुधार किए लिखता हूं
मानो कविताएं मेरे हाथ से बहती हैं
पूर्ण होता है मानो वसंत
मेरी गली के पुराने सरो वृक्षों पर’’
किंतु जैसे समय गुजरता है
और साल हमारे माथे के भीतर पेसते हैं
काव्य दिखने लगता है
किसी कुम्हार के काम-सा
तेज आंच पर गढ़ी मिट्टी जैसा
और यह काव्य प्रखर दामिनी है
यह खामोश शब्दों की बारिश है
पराजय और आस का जंगल
यह सताए हुए लोगों का गीत है
आजाद लोगों का नवगीत

हावियर हिरॉद की कविता सादी और नग्न है उनकी मृत्यु की तरह, वह संवेदनाओं से परिपूर्ण है उनके जीवन के मानिंद.

***

theprisma.co.uk पर प्रकाशित फिओना मार्शल के अंग्रेजी अनुवाद पर आधृत, तस्वीरें भी वहीं से. पल्लवी प्रसाद हिंदी की चर्चित कहानीकार हैं. वह हिमाचल प्रदेश के ऊना में रहती हैं. उनसे pjaruhar@yahoo.co.in पर बात की जा सकती है. यह प्रस्तुति ‘सदानीरा’ के 18वें अंक में पूर्व-प्रकाशित.

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