कविता ::
देवेश पथ सारिया

देवेश पथ सारिया

पेड़ हलाक होते हैं, शहीद नहीं

एक

इमारत के निर्माण के लिए
धरती समतल करने को
उन्होंने काट डाला
बाँसों का झुरमुट

आँधी और बरसात के समय
उन बाँसों की चीत्कार से
जो लड़की डर जाती थी
सबसे ज़्यादा दुखी वही हुई
उनके काटे जाने पर
और हलाक हो गया
मेरी भाषा का एक प्रेरणादायक उदाहरण
ज़मीन के नीचे बाँस का गहराई तक बढ़ने का

भाषा के इस क्षय में
स्वयं बाँसों की कोई ग़लती नहीं थी

दो

लीची का पेड़ तो उस जगह था भी नहीं
जहाँ बनाई जानी थी इमारत
शायद वह कच्चा माल लाने वाले
उनके बड़े-बड़े ट्रकों के रास्ते में आ सकता था

बाक़ी पेड़ों से कम पकती थीं
उस पेड़ की लीचियाँ
वे बाहर से पीली होकर झड़ जाती थीं
और मोटी, लाल कभी नहीं होती थीं
इसलिए कम दुख होता था
रास्ते में उनके कुचलने का
और किसी बारिश की रात
मैं शुक्र मानता इस बात का
कि पाँव के नीचे
कोई घोंघा नहीं, लीची कुचली है

अधपकी लीची देना कोई गुनाह तो नहीं
जिसके लिए काट ही दिया जाए पेड़ को

तीन

वह पहले ही एक ठूँठ भर था बस
जिसे पूर्व में ऐसे काटा और छीला गया था
कि बहुत क़रीब जाकर ही आभास होता था
कि उसकी जड़ें ज़मीन में थीं
किसी साल बारिश में
फूट सकती थी उससे कोई हरी पत्ती

अपने जीर्ण-शीर्ण वैभव में भी वह
अमूर्त रूप लगता था मुझे
कोणार्क के सूर्य मंदिर के रथ के पहिए का

उन्होंने नहीं छोड़ी
उसके बहुत नीचे की मिट्टी तक
रथ-आकाश-नक्षत्रों सहित उखाड़ फेंका
मेरा सारा अमूर्त कला-संसार

चार

निर्माण शुरू होते ही नोटिस लग गया है
तीन साल के दरमियाँ
वहाँ एजुकेशन बिल्डिंग बनेगी

पुराने लोग बताते हैं
इससे पहले तकनीकी शिक्षा की बिल्डिंग बनाते समय
क़ब्रिस्तान से उखाड़े गए थे गड़े मुर्दे
इकट्ठा करके जला दिया गया था कंकालों का ढेर
पेड़ों का ज़िक्र वे लोग भी नहीं करते
जबकि मुर्दों के इर्द-गिर्द भी होते हैं ज़िंदा पेड़

तकनीकी विज्ञान के पढ़ाकू
कभी-कभी डरकर उल्लेख करते हैं
क़ब्रों की नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव का
पेड़ों के बिछोह को उनके फेफड़े भूले रहते हैं

तीन साल बाद नई बिल्डिंग बनने पर
मैं यहाँ नहीं रहूँगा शायद
और अभी से न रहे मेरे प्यारे पेड़ों
तुम शहीदों में नहीं गिने जाओगे

देवेश पथ सारिया हिंदी कवि-लेखक और अनुवादक हैं। उनसे और परिचय के लिए यहाँ देखें : मेरा देश मेरे दिल में ज़ब्त एक रहस्य भर नहीं है

1 Comment

  1. Shyam Singh अक्टूबर 24, 2020 at 7:38 पूर्वाह्न

    Waah, pedon ke upar bahut gahri lines likhi he aapne… Ped bhi hamari tarah sajeev hote he unko kaatna ek insaan ko kaatne ki tarah hi hota he… Aap aur likhte rahe… Bahut bahut shubhkamnaayein aapko…

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