कविताएँ ::
रसिका अगाशे

रसिका अगाशे

समझदारी

हमें लगता है कि अब समझदारी आ गई
पर ख़ून कभी समझदार नहीं हो पाता
बालों की सफ़ेदी के साथ
छुपाना चाहते हैं हम सफ़ेद स्राव
हर मर्द कपड़ों के नीचे है नंगा
और हर औरत भी…
चाहे कुछ पहन ले…

अपनी नंगई को कभी स्वीकार न कर पाने वाले
डरे-सहमे जानवरों का झुंड हैं हम
और हमें पड़ी है बस —
समझदार होने की

लड़ाई-झगड़े-बलात्कार सड़क पर
खुलेआम करने वाले हम
बस प्यार छुपा लेते हैं
क्यूँकि हम समझदार हैं
और ख़ून में आया उबाल
बार-बार हमें जताता रहता
जिसका दमन करना सिखाया गया है बस!

अपने आपको व्यक्त करते हुए
अपने शरीर से हार जाती हूँ मैं
और रुमानी कविता की जगह
सामाजिक लेखा-जोखा लेकर
समझदारी की पोशाक ओढ़ लेती हूँ
जानते हुए कि अंदर से उतनी ही नंगी हूँ
जितना यह आसमान या धरती।

शाहीन बाग़ की औरतों के नाम

वे कौन हैं
जो ठिठुरती ठंड में
गोद में बच्चा लिए
ऐसे क़ानून के ख़िलाफ़ लड़ रही हैं
जिससे उनकी ही नहीं
पूरे देश की ज़िंदगी बदलनी है?
ज़रूर औरतें होंगी!

वे कौन हैं
जो दाल में तड़का लगाकर
जल्दी-जल्दी किसी के मुँह में
देकर सुकून का निवाला
विरोध में जुट जाती हैं?
ज़रूर औरतें होंगी!

वे कौन हैं
जो दिन-रात घुलती रहती हैं
अपने घर के मर्दों के ख़याल में
अपनी जवान बेटी की याद में
नम आँखें पोंछकर
सड़क पर खड़ी हो जाती हैं?
ज़रूर औरतें होंगी!

औरतें
शाहीनबाग़ की!

मेरा शरीर

मैं क्या कह रही हूँ
यह सुनने से पहले
मेरी लिपस्टिक का
रंग देख लेते हो तुम!
और बात मेरे साथ
चलने की करते हो!

क्योंकि मैं एक औरत हूँ!
इसलिए मेरे होंठ
मेरी छातियाँ
सिर्फ़ तुम्हें उत्तेजित
करने के लिए नहीं हैं!

मेरा शरीर कोई इश्तिहार नहीं!

रसिका अगाशे सुपरिचित अभिनेत्री और निर्देशक हैं। वह लेखन, रंगमंच और सिनेमा के संसार से संबद्ध हैं। वह मुंबई में रहती हैं। उनसे beingrasika@gmail.com पर बात की जा सकती है।

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