कवितावार में मंगलेश डबराल की कविता ::

इन सर्दियों में

पिछली सर्दियाँ बहुत कठिन थीं
उन्हें याद करने पर मैं इन सर्दियों में भी सिहरता हूँ
हालाँकि इस बार दिन उतने कठोर नहीं

पिछली सर्दियों में मेरी माँ चली गई थी
मुझसे एक प्रेमपत्र खो गया था
एक नौकरी छूट गई थी
रातों को पता नहीं कहाँ-कहाँ भटकता रहा
कहाँ-कहाँ करता रहा टेलीफ़ोन

पिछली सर्दियों में
मेरी ही चीज़ें गिरती थीं मुझ पर

इन सर्दियों में पिछली सर्दियों के कपड़े निकालता हूँ
कंबल टोपी मोज़े मफ़लर
उन्हें ग़ौर से देखता हूँ
सोचता हुआ पिछला समय बीत गया है
ये सर्दियाँ क्यों होगी मेरे लिए पहले जैसी कठोर।

मंगलेश डबराल (1948–2020) अत्यंत समादृत कवि-गद्यकार हैं। उनकी यहाँ प्रस्तुत कविता ‘कवि ने कहा’ (किताबघर प्रकाशन, संस्करण : 2010) से ली गई है।

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