कविताएँ ::
वीरू सोनकर

Veeru Sonker new poems
वीरू सोनकर

दुख की कविताएँ

कुर्सी

चल-फिर रहे कूल्हे के लिए दो बाई दो का लघु बिस्तर बनती
वह भूलती है
पैर के पंजों से आ रहा रक्त हो गया है बाधित
पंजों में भरा है
सड़क का समूचा ताप

निढाल हो रही आँखें चाहती हैं
कुर्सी का बिस्तर हो जाना
जो वह नहीं हो पाती

वह एक छोटी प्यास बुझाती है
एक घूँट नींद बनती है
और थकान के अगले संस्करण के लिए बि छ ड़ ती है

वह टुकड़ों में प्रेम करती है।

पालतू कबूतर

वे बारिश में नहीं होते
वे सुरक्षित मौसम की गोद मे रचते हैं—
खेलता हुआ एक चित्तीदार आकाश

ठिकाने से उठती
हर बुलावा-डाँट पर
वे ठिठकते-ठिठकते लौटते हैं

हवा से उनके तार
कई गाँठों से मिलकर
जुड़ते हैं।

लिखना

बहुत सोचने के बाद
तराज़ू पर नपा-तुला एक वाक्य
पीला होकर मर जाता है

फिर एक दिन
उसे हवा लगती है

फिर उसे एक पूर्व-कथन की तरह पढ़ा जाता है

फिर उसे एक मर चुके पूर्वज की तरह
हिचकिचाहट के साथ
डायरी में दर्ज कर दिया जाता है
जिसका कोई वारिस नहीं है।

बक्सा

वह घर का सबसे ज़रूरी सामान था

वह बार-बार खुलता,
बार-बार बंद होता था

कई बार
उसके ताले के भीतर से आँखें निकल आती थीं
जो घर के तमाम लोगों से अपनी नज़रें मिलाकर कहतीं—
ठीक है सब!

बहुत बार उसके भीतर कोई सामान नहीं होता था
सिर्फ़ हवा होती थी।

और
आश्चर्यजनक रूप से
एक पूरा घर उससे अपनी साँसें लेता था।

कम-ज़्यादा

जो ज़्यादा था
वह बहुत बार ज़रूरी भी होता था

चूँकि वह उपलब्ध था
तो उसके होने में कोई जादू नहीं था,
ऊब थी

जो कम था
जिसके कम होने से कुछ भी घटता नहीं था
पर जिसकी अनुपस्थिति का संगीत हवाओं पर तैरते हुए
सभी दिशाएँ पार कर जाता था

महानता का सबसे बड़ा जादू वही रचता था
प्रतीक्षाएँ उसी के लिए बूढ़ी हो जाती थीं

जो अनुपलब्ध था वही बुनता था
ज़रूरी के लिए एक ग़ैरज़रूरी हाशिया!

सुख

वह यूँ तो बार-बार आता था
पर बुलाये जाने पर कभी नहीं आता था

वह संयोग की तरह अचानक से फूटता था
और दुर्योग के कुएँ में
अचानक ही कूद कर मर जाता था

वह ग़ायब तो ज़मीन पर होता था
पर उसे ढूँढ़ने के लिए आँखें आकाश छानती थीं

फिर दुख आता था

हमारी इस बात की सबसे बड़ी गवाही बनकर
कि सुख कैसा भी हो
अंततः हमें ऊब ही जाना है

हमारे सुख का सबसे बड़ा रक्षक
दुख ही था।

***

वीरू सोनकर (जन्म : 9 जून 1977) हिंदी कवि-लेखक हैं। वह कानपुर (उत्तर प्रदेश) में रहते हैं। उनसे veeru_sonker@yahoo.com पर बात की जा सकती है। ‘सदानीरा’ पर इससे पूर्व प्रकाशित उनकी कविताएँ यहाँ पढ़ें :

यह कवियों के काम पर लौटने का समय है

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