रजनी परुलेकर की कविताएँ ::
मराठी से अनुवाद : सुनीता डागा

रजनी परुलेकर

नग्न सत्य

और अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा तुमने :

‘‘समाज की नज़र में
मैं पत्नी हूँ सम्मानित
पर सच कहो तो एक वेश्या
यद्यपि एक ही पुरुष की
और लगभग सभी इसी तरह से होती हैं
बस कुछ जानती नहीं हैं
और कुछ नहीं जुटा पाती हैं हिम्मत
कि स्वीकार करें अपने-आपसे भी
इसीलिए व्यर्थ है तुम्हारा
पुरुष के नग्न सत्य के पीछे यूँ दौड़ना
बहुत हो चुका यह संघर्ष
अब रुक जाओ
इस छटपटाहट, दौड़-भाग को विराम दो’’

रेशमी साड़ियाँ, मैचिंग गहने
ब्यूटी पॉर्लर और सतही गप्पबाज़ी के
कोलाहल में बहुत अलग लगा तुम्हारा स्वर

बरसों से अपने ही मस्तिष्क को
अपने ही नाख़ूनों से खुरचते हुए
निगलती रही मैं उसका एक-एक टुकड़ा
प्रत्येक कौर के साथ
प्रेमरहित अवस्था में सूख गया जब गला
तब अपमान के शैवाल से पटा पानी
अपनी ही अंजुली में भरकर पीना पड़ा मुझे
कभी दाँव-पेचों से किया मुक़ाबला
दाँव-पेच खेलते हुए
कभी झूठ का भी लिया सहारा

पुरुष के नग्न सत्य की मेरी खोज
हो चुकी है ख़त्म अब
निर्जन वीराने की विषण्ण स्तब्धता
छाई है मेरे मन पर
और उस शांति के धीमे प्रवाह में
किसी फूल की भाँति
तैर रहा है तुम्हारा वह वाक्य :

‘‘मैं पत्नी हूँ सम्मानित
पर सच कहो तो एक वेश्या
यद्यपि एक ही पुरुष की’’

मैंने उस फूल को
अपनी अंजुली में लिया है
अंतिम साँस तक
अपनी नग्न देह को
पुरुष से स्वाधीन करते रहना है मुझे!

वस्त्रों को उतारने से पूर्व

वस्त्रों को उतारने से पूर्व
खोलना होगा
एक-दूजे के मन की परतों को
भीतर क्या छुपा है गहराई में
जानना-समझना होगा इसे
होगी बहस और टकराव भी होगा
पर शायद पता चले
आँखों के सामने दिखाई देती है जो राह
कहाँ तक है उसकी दौड़
अपनी-अपनी क़ाबिलियत के मुताबिक़
जिस-तिस की प्रतिक्रियाएँ
सुनी-सुनाई कथाएँ और उप-कथाएँ
क्या ऐसा नहीं सोचा जा सकता है कि
आमने-सामने सीधी-सीधी बात करते हुए
यथासंभव जान ही लें एक-दूजे को?

इंसानों की आत्मीयता के पीछे

इंसानों की आत्मीयता के पीछे छुपी
भली-बुरी मंशाएँ
दो बेलों की एक-दूजे में गुँथी परछाइयाँ
ठीक उसी तरह उनका गुँथाव होता है
वे स्वयं भी नहीं जानते
कब-कैसे बुना गया है

यकायक किसी प्रसंग पर
वह नज़र आ ही आता है
अप्रत्याशित, अपनी तरह उन्हें भी
कोई थरथराते हाथों से दुपट्टा हटा दे
और ख़ूबसूरत चेहरे की जगह उसे
दिखाई दे अपनी विद्रूप मंशा
वैसे ही होता है घटित

फिर वे और भी अधिक आत्मीय बनते हैं
बनावटी-लाचार मुस्कुराहट में
छुपा लेते हैं अपना शर्मिंदा चेहरा
झुँझलाते हैं
कमज़ोर बहाने बनाते हैं
पल में सौम्य तो पल में आक्रमक बन जाते हैं

दिन रात्रि को जन्म देता है
रात्रि दिन को
बाँबी में रानी चींटी जनती रहती है
ऐसे रिश्ते में पानी भले ही गंदला न हो
हवा का हर झोंका संदेहास्पद नज़र आता है।

रानी

एक आवेग के साथ उसकी बात ख़त्म होते ही
फैली हुई गहन स्तब्ध शांति
दुपहर की तीखी किरणें सौम्य हो गईं
उसके विरोधियों के हिंस्र नाख़ून भी भोथरे होते गए
अपने सात्विक क्रोध में वह भस्म हो गई
एक तेजस्वी, सुनहरा पीला रंग
आकाश में सरसराता चला गया
उसके मस्तक पर उसका मुकुट चढ़ गया
क़दम-क़दम पर संघर्ष का मुक़ाबला करते हुए
बिना पुरुष के गुज़ारा एकाकी जीवन
रक्त का उबाल, शब्दों का तेज
उसके कठोर चेहरे की रूखी चमड़ी का
बन गया एक फ़ौलादी कवच
जिसने सूरज के बिंब को ढँक दिया
उसके तत्त्व-निष्ठ शब्दों की
तलवार-सी धार
साधारण-से नाक-नक़्श पर चढ़ गई
और एक विलक्षण सुघढ़, निग्रह से भरा चेहरा
मध्याह्न के सूरज की तरह
आकाश में चमकता रहा।

कृतज्ञता से भरकर

किसी परिपूर्ण लंबी कविता की मानिंद
तुम्हारा व्यक्तित्व
जैसे एक भव्य वास्तु-शिल्प
तुम्हारे इर्द-गिर्द फैली हरियाली पर
रेंगते जीवों ने
बचपन से दिए तुम्हें कई दंश
पर तुम्हारे नाख़ून कभी
नुकीले नहीं बने उन्हें सह कर भी

प्रकृति की सुंदरता,
इंसानों में छुपे गुणों से
गदगद होता तुम्हारा मन
वही उस वास्तु-शिल्प का गुंबद
तुम्हारे कौतुक से भरे उदार शब्द
फैलते जाते हैं किसी घंटे के नाद की तरह
उस गुंबद में

कली के खिलते समय
जैसे हुलसते हैं परागकण
उसी तरह तुम्हारी संवेदनशीलता…
सूक्ष्म… तरल
कविता नहीं, फूल भी नहीं
फूलों का पराग ही देना होगा तुम्हें
उपहार स्वरूप, कृतज्ञता से भरकर!

रजनी परुलेकर (जन्म : 1945) सुप्रसिद्ध मराठी कवयित्री हैं। ‘दीर्घ कविता’, ‘काही दीर्घ कविता’, ‘स्वीकार’, ‘चित्र’ और ‘पुन्हा दीर्घ कविता’ उनके प्रमुख शीर्षक कविता-संग्रह हैं। सुनीता डागा मराठी-हिंदी लेखिका-अनुवादक हैं। उन्होंने समकालीन मराठी स्त्री कविता पर एकाग्र ‘सदानीरा’ के 22वें अंक के लिए मराठी की 18 प्रमुख कवयित्रियों की कविताओं को हिंदी में एक जिल्द में संकलित और अनूदित किया है। यह प्रस्तुति ‘सदानीरा’ के 22वें अंक में पूर्व-प्रकाशित।

2 Comments

  1. Akhilesh Singh जुलाई 18, 2020 at 9:50 पूर्वाह्न

    New thoughts in poems. Your poems are Best poem for our life. Thanks.

    Reply
  2. राजीव थेपडा मई 31, 2021 at 4:59 अपराह्न

    बेहतरीन लेखन
    उत्कृष्ट रचनाधर्मिता

    Reply

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