गब्रिएला मिस्त्राल की कविताएं ::
अनुवाद : प्रचण्ड प्रवीर

गब्रिएला  मिस्त्राल, 7 अप्रैल 1889-10 जनवरी 1957

ईश्वर ऐसा चाहते हैं

यही धरती तुम्हें पहचानने से इनकार कर देगी
अगर तुम्हारी आत्मा मेरी आत्मा का सौदा करने लगे
अपनी प्रचण्ड पीड़ा में
समंदर थर्राकर बढ़ने लगेगा

उस दिन से तुमने मुझे अपने पास रख लिया
जब फूलों वाले कांटेदार पेड़ के तले
हम दोनों नि:शब्द साथ खड़े थे और प्रेम
उसी कांटेदार पेड़ के घने सौरभ की तरह
हमें बेध गया था

यही मिट्टी सांपों को उगलेगी
अगर तुम कभी मेरी आत्मा का सौदा करने लगो
तुम्हारी संतान से बांझ और शून्य
मैं अपने घुटनों को हिलाती हूं
मेरे सीने में ईसा मसल दिया जाएगा
और मेरे घर का दानी दरवाजा
भिखारिन की कलाई मरोड़ देगा
और दुख में पड़ी औरत को खदेड़ देगा

जो चुंबन तुम्हारा मुंह किसी और को दे
मेरे कानों में उसकी अनुगूंज
जैसे आस-पास की गहरी कंदराओं में
तुम्हारे शब्द मुझ तक वापस आएंगे

यहां तक कि रास्ते की धूल
तुम्हारे पांव के निशान की सुगंध बनाए रखती है
मैं उसका पीछा करती हूं एक हरिणी की तरह
तुम्हारे पीछे-पीछे पर्वतों पर चली जाती हूं

बादल मेरे घर के ऊपर रंग देंगे
तुम्हारे नए प्यार की छवि
तुम उसके पास जाओ, एक चोर की तरह, घुटनों के बल
उथली जमीन पर उसे चूमने के लिए
जब तुम उसका चेहरा उठाओगे तुम पाओगे
रोते रहने के कारण मेरा बिगड़ गया चेहरा

ईश्वर तुम्हें रोशनी नहीं देंगे
जब तक तुम मेरे साथ न चलो
ईश्वर तुम्हें पीने नहीं देंगे
यदि पानी में मैं नहीं कांपूं
वे तुम्हें कहीं सोने नहीं देंगे
सिवा मेरी जुल्फों के साए में

अगर तुम जाते हो, तुम मेरी आत्मा को बर्बाद कर दोगे
जैसे कि तुम रास्ते के किनारे के खर-पतवार को कुचलते हो
भूख और प्यास तुम्हें कुतरने लगेंगी
जब तुम पहाड़ों से गुजरों या मैदान से
और तुम जहां कहीं भी रहो, तुम देखोगे
शामें मेरे जख्म से खून की तरह बहेंगी
जब तुम किसी और औरत को बुलाओगे
मैं तुम्हारे जुबां से निकल आऊंगी
नमक के स्वाद की तरह
तुम्हारी कंठ की गहराई में
नफरत में, गाने में या तड़प में
केवल मैं रहूंगी तुम्हारी पुकार में

अगर तुम जाते हो और मुझसे दूर मर जाते हो
दस साल बाद तुम्हारे हाथ इंतजार करते रहेंगे
जो जमीन के अंदर खोखले हो चुके होंगे
मेरे आंसुओं की बूंदों को जमा करने के लिए
और तुम महसूस करोगे
अपने सड़ते हुए शरीर को सिहरते हुए
जब तक मेरी अस्थियां चूर-चूर होकर
तुम्हारे चेहरे पर धूल की तरह न पड़ जाएं

जो नहीं नाचते

एक पंगु बच्चे ने पूछा :
‘‘मैं कैसे नाचूं?’’
अपने दिल को नाचने दो
हमने कहा

फिर अशक्त ने पूछा :
‘‘मैं कैसे गाऊं?’’
अपने दिल को गाने दो
हमने कहा

फिर मुरझाया हुआ कांटा पूछ बैठा :
‘‘लेकिन मैं, मैं कैसे नाचूं?’’
अपने दिल को हवा के साथ उड़ने दो
हमने कहा

फिर प्रभु ऊपर से बोले :
‘‘मैं इस नीले से कैसे उतरूं?’’
आइए हमारे लिए प्रकाश में यहां नाचिए
हमने कहा

सारी घाटी नाच रही है
धूप में साथ मिलकर
और जिसका दिल हमारे साथ शामिल नहीं होता
वह गर्द बन जाएगा, राख हो जाएगा

बैले नर्तकी

बैले नर्तकी अब नाच रही है
उसके पास है सब कुछ खो देने का नाच
वह सब कुछ गिरने देती है जो उसके पास है
अपने माता-पिता और भाई, बगीचे और खेत,
अपने नदी का स्वर, रास्ते
उसके घर की कहानी, उसका खुद का चेहरा
और उसका नाम और बचपन के खेल
जैसे कि जब कुछ जो उसके पास था
वह गिरने देती है
अपनी गर्दन से,
अपनी छाती से
और अपनी आत्मा से

मेरी मां की मृत्यु

मां,
अपने सपने में मैं बैंगनी नजारों में चलती हूं

एक काला पहाड़ जो हिलता-डुलता है
दूसरे पहाड़ तक पहुंचने की कोशिश में है
और तुम उनमें अस्पष्टता से होती हो
पर वहां हमेशा एक दूसरा गोल पहाड़ है
जहां कर चुकाने के लिए घूमकर जाना पड़ता है
हमारे और तुम्हारे हर्ष के उस पर्वत तक पहुंचने के लिए

***

प्रचण्ड प्रवीर कथा और दर्शन के इलाके में सक्रिय हैं. हिंदी और अंग्रेजी दोनों में लिखते हैं. हिंदी में एक उपन्यास, एक कहानी-संग्रह और सिनेमा से संबंधित एक किताब प्रकाशित है. उनके बारे में और जानकारी के लिए prachandpraveer.com पर जाया जा सकता है.

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