स्वस्ति मेहता और सनमीत भाटिया की रचनाएँ ::
प्रस्तुति : सुदीप्ति

बीता हुआ साल सिर्फ़ बड़ों पर ही भारी नहीं गुज़रा है, यह बच्चों और तरुणों पर भी उसी तरह गुज़रा है। मैं ज़्यादातर किशोरों और तरुणों से घिरी रहती हूँ। मैंने हफ़्ते दर हफ़्ते उनके व्यवहार, मन:स्थिति और स्वभाव में आ रहे फ़र्क़ को महसूस किया है। उनकी खीझ, परेशानी और घुटन मुझ तक पहुँची है। मुझ तक उनकी फड़फड़ाहट और उनकी कोशिशें भी पहुँची हैं।

जब भी मनुष्य अपने स्वभागत तरीक़े से अलग जीवन जीने को बाध्य होता है, जब भी उसकी प्रकृति के विपरीत उसे बाध्य किया जाए या विकट परिस्थिति ही उत्पन्न हो तो शायद ऐसा ही होता है। कभी-कभी लगता है कि अपने से पहले की पीढ़ियों की ग़लतियों को ये बच्चे भुगतने को बाध्य हैं। मसलन, प्रकृति से खिलवाड़ हमसे पहले की पीढ़ियों ने किया और यह अब भी ज़ारी है; पर उसका विकराल रूप, उसका बदला तो भविष्य की संतान को झेलना है।

यहाँ प्रस्तुत डायरीनुमा गद्य और कविता मेरी दसवीं कक्षा की दो विद्यार्थियों की क़लम से ही नहीं, मन से भी निकली रचनाएँ हैं। इनके माध्यम से आप एक झलक पा सकते हैं कि बीते वक़्त में इस उम्र के किशोर किन बातों से गुज़रे और अभी गुज़र रहे हैं, वे किन बातों पर मंथन करने में जुटे हैं। मितभाषी, कोमल, संवेदनशील पर दृढ़ और तार्किक व्यक्तित्व की स्वामिनी स्वस्ति मेहता की डायरी और ख़ुशमिज़ाज, मृदुभाषी, रचनात्मक होने के साथ वाक्-पटु सनमीत भाटिया की कविता पढ़कर यह ज़रूर सोचिए कि आप इन बच्चों के लिए कैसी दुनिया चाहते हैं।

— सुदीप्ति

●●●

स्वस्ति मेहता

हवा ने मुझे समझाया

कभी-कभी जब मैं अकेली होती हूँ, इतनी अकेली कि हवा की गुदगुदी करती हुई फुसफुसाहट मेरे और शांति के बीच खड़ी हो; तब हम बातें करते हैं। कोई यूँ भी कह सकता है कि हवाएँ बात करती हैं और मैं बस सुनती हूँ।

मुझे आप बावली समझ सकते हैं, मगर अगर आप भी कभी अपनी आँखे बंद करें और हवा को अपने चेहरे को चूम कर निकल जाने दें, अगर एक बार आप सोच कर राय बनाने की बजाय चीज़ों को सिर्फ़ समझने की कोशिश करें, तो आपको भी पता चल जाएगा कि हवा हमारे आस-पास मौजूद सबसे समझदार उपस्थितियों में से एक है।

हवा मुझे बताती है कि हम कभी-कभी ही चीज़ों को सही तरह से समझ पाते हैं और अक्सर ही चीज़ों को ग़लत नज़रिए से जान बैठते हैं।

मुझे विद्यालय की याद ज़रूर आती है; मगर वहाँ मौजूद लोगों की नहीं, कक्षा के भीतर की नहीं, सच कहूँ तो शिक्षकों की भी नहीं; बल्कि उस वक़्त की हक़ीक़त में पल रही उन चीज़ों की जिनको एक नज़र में समझा और प्यार किया जा सकता है। वे चीज़ें जो अपनी असलियत पर्दों के पीछे नहीं छिपाए रहती हैं। वे जैसी होती हैं, वैसी ही दिखती हैं। वे छोटी-छोटी चीज़ें जैसे पक कर नीचे गिरे हुए जामुनों की मीठी भीनी-भीनी ख़ुशबू, कक्षा शुरू होने का इंतज़ार कर रहे झरोखे जो मानो हमारे हाथों से खुलने की राह देख रहे हों और अक्सर ही डैडेलियन की रूई के गोलों-सी उड़ती फुग्गियाँ।

मुझे याद है कि सबसे पहले हवा ने मुझे समझाया था कि किस तरह ये फुग्गियाँ जो असलियत में बीज हैं; असल पौधे से कितनी अलग हैं। जब तक ये मिट्टी में बोई नहीं जातीं। जब ये पहली बार अपनी आज़ादी से ज़्यादा कुछ माँगती हैं—पानी, धूप, आहार। फिर ये धीरे-धीरे उसी पौधे की तरह ही बनने लगती हैं, जिससे छूटकर ही उनको अपनी आज़ादी मिली थी।

सोचती हूँ कि क्या हम भी कहीं न कहीं उन बीजों जैसे ही नहीं हैं? हम आँखों में अनोखी चमक के साथ जन्म लेते हैं। घर के हर कोने में कुछ जादुई-सा ढूँढ़ लेते हैं। हँसते हैं, रोते हैं, प्यार करते हैं और स्वाभाविक भावनाओं को महसूस करते हैं। मगर जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, हम कुछ-कुछ बदल से जाते हैं और हमारा वह बचपना, वह किनारों में सिमटी नटखट आज़ादी एक वहम-सी बन कर रह जाती है।

परिवर्तन आसान नहीं होता। मगर अगर शुरुआत हो जाए, तो रुकना कठिन होता है।

ज़रूरत, इच्छा, चाहत—हम इन भावों के साथ नहीं जन्मे होते हैं… ये तो हमें इस दूजे जन्म में मिल जाते हैं। जब सांसारिक परिस्थितियाँ हमारे सपनों की चंचल-सी दुनिया के साथ लड़ बैठती हैं तो हम उस मंथन में रस्सी-से बन जाते हैं। हम उस दुपट्टे से हो जाते हैं जिसकी हर सलवट में कहीं अधूरे सच तो कहीं अप्राकृतिक भाव छिपे होते हैं। हम अस्ल की इसी माटी में गड़ जाते हैं और सबकी तरह तारों को निहारते हुए भूल बैठते हैं कि हम क्या थे, क्या चाहते थे और क्या बन गए हैं।

हवा हाल ही में मेरे लिए एक फुग्गी लाई थी। अब वह मेरी दोस्त है। वह कहती है कि उसे एक चिड़िया के घोंसले का अंश होना है, न कि एक पीला फूल। मगर उसने मुझे कारण नहीं बताया। शायद उसे पीला रंग नहीं पसंद या शायद उसे सफ़ेद ही भाता है…

●●●

सनमीत भाटिया

होने के लिए

समुद्र के पास
लहरें पैरों पर
विचार मन में :

मैं क्या करूँगी जब वह मिलेगा जिसे मैं चाहती हूँ
मगर जिसकी ज़रूरत नहीं?

मैं वेदना झेलने के लिए ख़ुद को कैसे तैयार करूँगी?

मैं क्या करूँगी जब मेरा विश्वास अटूट होगा?

मैं ज़िंदगी की ख़ुशी की कसौटी से कैसे गुज़रूँगी?
किसकी आँखें मुझे देखने पर ख़ुशी से चमकेंगी?
क्या कोई मुझसे ऐसे मुहब्बत करेगा—
साथ रह कर नहीं मगर मेरे लिए, मेरे आस-पास रहकर?

क्या कोई है जो ज़िंदगी को मेरे नज़रिए से देखेगा?
कौन मेरे आस-पास चादर की तरह छा जाएगा कि
मुझे दुनिया की घृणास्पद हरकतों से बचा सके?

क्या मुझसे कोई उतना प्यार करेगा
जितना एक मानवीय हृदय कर सकता है?

मैं उन चीज़ों के साथ क्या करूँ जो मुझे बुरा महसूस कराती हैं?

मैं हमेशा ख़ुशमिज़ाज कैसे रहूँ?

मैं क्या करूँ जब मेरे अपने ही पराए बन जाते हैं?

मैं आख़िर निराशाओं का सामना किस साहस के साथ करूँ?
क्या एक ग़लत मोड़ मुझे सही राह दिखा सकता है?

मैं निराशा कैसे न महसूस करूँ
जब वही एक चीज़ है जो मैं महसूस करती हूँ?

मैं इस असहायता से कैसे गुज़रूँ?

मैं क्या करूँ कि जब दर्द ही मुझे सहलाता है?

क्या मैं टुकड़ों-टुकड़ों में होकर भी एक बन पाऊँगी?

…ये विचार मेरे मन से गुज़र रहे थे
और मुझे विपदा में डाल रहे थे

आँखें बंद कीं मैंने
और आस-पास समुद्र को महसूस किया

समुद्र ने मुझसे कहा :
अपनी चिंताओं को बहने दो

तब सिर्फ़ लहरें ही नहीं मुझसे टकरा रही थीं
मुझसे टकरा रहे थे एहसास
जिन्होंने मुझे सिखाया
कि यह दर्द हमेशा के लिए नहीं है
यह पल हमेशा के लिए नहीं है
अगर कुछ है तो हम हैं

मैंने निर्णय लिया कि
मैं सिर्फ़ समुद्र के पास रहूँगी
जब तक मैं हँसूँ
जब तक मैं रोऊँ
जब तक मेरी उम्र हो
और मैं भूल जाऊँ संख्याएँ
कि किसी घड़ी या किसी कैलेंडर का कोई मतलब न हो
कि मैं अपने आपको बताऊँ :
मैं कितनी अजीब और अपूर्ण हूँ
जब तक मैं बारिश को देखूँ
जब तक मैं चिड़ियों का चहचहाना सुनूँ
जब तक मैं कड़ी मेहनत करूँ
और मुझे मिले अवसरों को धन्यवाद दूँ
जब तक मैं चिल्लाऊँ
और मुझे मेरी आवाज़ की गूँज सुनाई दे
जब तक मुझे क्रोध आए
और मैं उसे जाने दूँ
जब तक मैं आसमान के नीचे बैठ कर तारों को देखूँ
जब तक मैं अपने आपको बताऊँ कि चिंता की कोई बात नहीं है
जब तक मैं उड़ूँ, भागूँ, गिरूँ और रुकूँ नहीं
जब तक मैं उन अमूर्त सांत्वना-तरंगों को छू लूँ
जब तक मैं हूँ
रहूँ
बस होने के लिए

सुदीप्ति हिंदी कवयित्री-लेखिका हैं। उनसे और परिचय के लिए यहाँ देखें : प्रेमिकाएँ

प्रतिक्रिया दें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *