ख़लील जिब्रान के कुछ उद्धरण ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद और प्रस्तुति : योगेंद्र गौतम

ख़लील जिब्रान

यहाँ प्रस्तुत उद्धरण लेबनानी-अमेरिकी दार्शनिक ख़लील जिब्रान की संसारप्रसिद्ध पुस्तक पैग़म्बर से चुने गए हैं। यह पुस्तक जीवन और मानवीय-स्थिति पर एक ज्ञानी अल-मुस्तफ़ा के उपदेशों की एक शृंखला है। वह एक काल्पनिक द्वीप ‘ओर्फ़लीज़’ पर कोई बारह बरस बिताने के बाद अपने घर जाने के लिए जलपोत पर सवार होने वाले हैं। द्वीप के निवासी उनसे जीवन के महत्त्वपूर्ण प्रश्नों—प्रेम, परिवार, काम और जीवन पर अपने विचार साझा करने के लिए कहते हैं।

ख़लील जिब्रान की ‘पैग़म्बर’ एक गद्य-काव्य नीतिकथा है। यह एक सार्वकालिक उत्कृष्ट कृति हैं और 1923 में पहली बार प्रकाशित होने के बाद से कभी प्रकाशन से बाहर नहीं हुई है।

सार्वभौमिक-अध्यात्मवाद प्रदान करती यह पुस्तक धार्मिक कट्टरवाद के विपरीत जीवन की प्रत्येक अवस्था में ज्ञान का स्रोत है और देने के लिए पूर्णकालिक उपहार।

प्रेम पर

तब अलमित्रा ने कहा : ‘‘प्रेम के विषय में हमें कुछ कहिए।’’

और उन्होंने अपना सिर उठाया और ऊपर लोगों को देखा और उन पर स्थिरता छा गई। गंभीर वाणी में उन्होंने कहा :

जब प्रेम तुम्हें इंगित करे उसका अनुसरण करो। हालाँकि उसके रास्ते कठिन और खड़े हैं।

जब उसके पंख तुम्हें आग़ोश में लें तो सहज मान जाना। हालाँकि उसके डैनों की नोक में छिपी तलवारें तुम्हें घाव दे सकती हैं।

जब वह तुमसे कुछ कहे, उसका यक़ीन करना; हालाँकि उसकी आवाज़ तुम्हारे सपनों को छितरा सकती है—जैसे उत्तर से आती हवा बाग़ीचे को बेकार कर देती है।

जहाँ प्रेम तुम्हारी ताजपोशी करता है, वहीं वह तुम्हें सूली पर भी चढ़ा सकता है। वह तुम्हारी वृद्धि के लिए है तो तुम्हारी छँटाई भी कर सकता है।

यदि वह तुम्हारे क़द तक उठकर तुम्हारी सबसे कोमल शाख जो सूरज की रोशनी में भी काँपती हो, को दुलार सकता है तो वह तुम्हारी जड़ों तक उतरकर उनकी जकड़ी हुई मिट्टी तक को झिंझोड़ सकता है।

मकई के पूले की तरह वह तुम्हें ख़ुद में समेट लेता है।

वह तुम्हें नग्न होने तक गाहता (पछीटता) है।

वह तुमसे भूसा अलग होने तक कपड़छन करता है।

वह तुम्हें सफ़ेद होने तक पीसता है।

वह तुम्हें मृदु होने तक गूँथता है; और तब वह तुम्हें अपनी पवित्र-अग्नि पर आसन्न करता है कि तुम ईश्वर के पवित्र-भोज की पवित्र-रोटी बन सको।

यह सब प्रेम तुम्हारे साथ तब तक करता है, जब तक तुम अपने हृदय के रहस्य नहीं जान जाते और उस ज्ञान में जीवन के हृदय का एक अंश नहीं बन जाते।

लेकिन अगर अपने भय में तुम कुल प्रेम की शांति और प्रेम का आनंद ढूँढ़ते हो तो बेहतर है कि तुम अपनी नग्नता ढँक लो और प्रेम की भुसौरी (खलिहान) से बेमौसम विश्व में बाहर आ जाओ, जहाँ तुम हँस सको, पर अपनी सभी हँसी नहीं, और रोओ, लेकिन सभी आँसू नहीं।

प्रेम कुछ नहीं देता सिवाय ख़ुद के और कुछ नहीं लेता सिवाय ख़ुद के।

प्रेम आधिपत्य नहीं लेता, न ही इसको अधिकार में लिया जा सकता है; क्योंकि प्रेम प्रेम के हेतु प्रचुर है।

जब तुम प्रेम करो तो तुम्हें नहीं कहना चाहिए, ‘‘मेरे हृदय में ईश्वर है…’’ बल्कि कहना चाहिए, ‘‘ईश्वर के हृदय में मैं हूँ।’’

न सोचो कि तुम प्रेम की गति निर्धारित कर सकते हो; यदि यह तुम्हें योग्य पाता है तो तुम्हारी गति वह निर्धारित करेगा।

प्रेम की कोई इच्छा नहीं सिवाय इसके कि वह अपने को परिपूर्ण करे। लेकिन यदि तुम प्रेम करते हो और इच्छाएँ रखते हो, तो ये तुम्हारी इच्छाएँ हों :

पिघलना और बहते पानी का एक सोता (स्रोत) हो जाना जो रात्रि को अपनी धुन सुनाता है।

बहुत अधिक कोमलता की पीड़ा को समझना।

अपनी स्वयं की प्रेम की समझ से घायल हो जाना; और स्वेच्छा तथा प्रसन्नता से रक्त बहाने को सज्ज होना।

प्रभात को हल्के दिल से उठना और प्रेम के एक और दिन को धन्यवाद कहना; दुपहरी को आराम करना और प्रेम के परमानंद में होना; सन्ध्या-वेला में कृतज्ञतापूर्वक घर लौटना; और तब प्रिय के लिए हृदय में प्रार्थना और होंठों पर प्रशंसा के गीत लिए सो जाना।

योगेंद्र गौतम हिंदी कवि-अनुवादक हैं। उनसे yogendragautam567@gmail.com पर बात की जा सकती है। इस प्रस्तुति से पूर्व उन्होंने ‘सदानीरा’ के लिए अरबी भाषा के सुप्रसिद्ध कवि निज़ार कब्बानी की कुछ कविताएँ अनूदित की थीं। ‘सदानीरा’ पर समय-समय पर संसारप्रसिद्ध रचनाकारों के उद्धरण प्रकाशित होते रहे हैं, उनसे गुज़रने के लिए यहाँ देखें : उद्धरण

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