प्रोमिला मन्हास की कविताएँ :: डोगरी से अनुवाद : कमल जीत चौधरी
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जन्म के वक़्त मैं रोई थी किस भाषा में अब याद नहीं, पर वही थी शायद मेरी भाषा
कविताएँ :: मनीषा जोषी
मेरे पास विदा का कोई समुचित वाक्य नहीं
कविताएँ :: पंकज प्रखर
पेड़ और पत्तों की सहमति से आता है पतझड़, पेड़ और पत्तों की सहमति से ही विदा लेता है
कविताएँ :: जितेंद्र सिंह
अगम्य अँधेरे में वह खड़ा है शांत
कविताएँ :: गोविंद निषाद
जीवन मथता है मुझे अहर्निश और संभव करता है एक सच
कविताएँ :: मधु बी. जोशी