एकाग्र :: राही डूमरचीर कविताएँ | कथाएँ | तस्वीरें | अनुवाद कविताएँ कहा बाँसलोई ने मैं उन्हें बाँसलोई के बारे में बता रहा था कैसे उसने हमें सींचा कितना प्यारा है उसका होना, उसका हमारी ज़िंदगी में बहना उनमें से एक, मुझे बार-बार टोके जा रहे थे— ‘बरसाती नदी है न’ ‘साल भर तो पानी नहीं रहता होगा’ ‘छोटी नदी होगी, पहाड़ी नदियाँ जैसी होती…
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प्रेम और मोह को समझने की इच्छा से
कविताएँ :: उमा भगत
जब मुझे असभ्य हो जाना चाहिए था
कविताएँ :: प्रदीप अवस्थी
‘प्रतिलिपि’ को हमने एक मूल्य की तरह निभाया
बातें :: गिरिराज किराडू से जे सुशील
चाँद का सामान्य होना
कविताएँ :: तृषान्निता
सरलतम सुख की खोज ही सबसे दुःसाध्य है
कविताएँ :: मानसी मिश्र