अदूनिस की कविताएँ ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद : राहुल तोमर

अदूनिस

गति

मैं अपनी देह के बाहर यात्रा करता हूँ, लेकिन मेरी देह के भीतर ऐसे महाद्वीप मौजूद हैं जिनसे मैं अनभिज्ञ हूँ।
मेरी देह बाहरी रूप से निरंतर गतिमान है।
मैं नहीं पूछता : कहाँ हो? या कहाँ थे तुम? मैं पूछता हूँ, कहाँ जाऊँ?
रेत मेरी ओर देखती है और मुझे रेत में परिवर्तित कर देती है
और पानी मेरी ओर देखता है और मुझे अपना बंधु बना लेता है।
सच में, कुछ भी नहीं है अस्त करने को सिवाय स्मृति के।

कविता के लिए

क्या तुम कभी नहीं बदलोगी अपना स्याह लिबास
जिसे पहन तुम आती हो मेरे पास?
तुम क्यों करती हो यह निवेदन कि मैं टाँक दूँ तुम्हारे हर शब्द पर रात का एक टुकड़ा?
कैसे और कहाँ से तुमने पाई है यह मुफ़्तख़ोर ताक़त
जो भेद देती है आकाश जबकि तुम काग़ज़ के टुकड़े पर रखे कुछ शब्द हो महज़?

वह वृद्धावस्था नहीं बल्कि बचपन है,
जो भर देता है तुम्हारे चेहरे को झुर्रियों से।

देखो इस दिन को यह कैसे रख देता है सूरज के काँधे पर अपना सिर
और कैसे तुम्हारे सानिध्य में थका हुआ मैं रात की
जाँघों के मध्य सो जाता हूँ।

वह रथ आ गया है जो तुम्हारे लिए लाता है किसी अज्ञात की चिट्ठियाँ

हवाओं को कह दो कि ऐसा कुछ भी नहीं है जो
तुम्हें रोक सके मेरे कपड़ों के भीतर आने से।

पर क्या तुम हवा से पूछती हो : ‘‘कि तुम क्या काम करती हो और किसके लिए?’’

सुख और दुख ओस की दो बूँदें हैं तुम्हारे माथे पर
और जीवन एक उपवन है जहाँ मौसम चहलक़दमी करते हैं।

मैंने दो रोशनियों के दरमियान कभी कोई ऐसा युद्ध नहीं देखा
जैसा तुम्हारी और उस स्त्री की नाभि के मध्य हुआ था
जिससे बचपन में मैंने किया था प्रेम।

क्या तुम्हें याद है, मैंने कैसे उस युद्ध को देखा था?
और कैसे समय के सामने खड़े हो कहा था :
‘‘अगर तुम्हारे पास दो कान हैं जिनसे सुना जा सकता हो, तो तुम भी चल देते इस अंतरिक्ष से…
भ्रमित और अस्त-व्यस्त,
बिना किसी शुरुआत के अपने अंत की ओर।’’

क्या तुम कभी अपनी वह स्याह पोशाक बदलोगी
जिसे पहन तुम आती हो मेरे पास?

बारिशें

वह अपनी छाती से लगाए रखता है हल,
रखता है बादलों और बारिशों को अपनी हथेली पर।
उसका हल खोल देता है वह द्वार
जो खुलता है संपन्न संभावनाओं की ओर।

वह छितरा देता है भोर को अपने खेतों पर और दे देता है उसे अर्थ।
उसे कल देखा था हमने।
उसके रास्ते में एक गरम पानी का झरना था
दिन के प्रकाश के पसीने का
जो लौट चुका था उसके सीने में आराम करने के वास्ते,
लौट गए थे बादल और बारिश भी उसकी हथेली में।

गोली

सभ्यता की वाक्पटुता से सनी एक गोली घूमती है
और फाड़ देती है साँझ का चेहरा।
एक भी क्षण ऐसा नहीं बीतता जब यह दृश्य दुहराया न जाए
दर्शक एक और घूँट पीते हैं ज़िंदगी का और जीने लगते हैं
कोई पर्दा नहीं गिराया जाता
न कोई परछाई, न ही कोई मध्यांतर
यह दृश्य इतिहास है
और मुख्य कलाकार, सभ्यता।

दो कवि

अनुगूँज और ध्वनि के मध्य खड़े हैं दो कवि
पहला वाला टूटे चाँद की तरह बोलता है
और दूसरा उस बच्चे की भाँति चुप है
जो हर रात ज्वालामुखी के हाथ रूपी
पालने में सोता है।

पेड़

मैंने कोई भाला अपने पास नहीं रखा,
न ही फोड़ा है कोई सिर
और गर्मियों में और सर्दियों में भी
मैंने प्रवास किया है गौरैया की तरह
भूख की नदी में, उसके जादुई जल-विभाजन में

मेरा राज्य पहनता है पानी का चेहरा
मैं राज करता हूँ अनुपस्थिति के ऊपर
मैं राज करता हूँ अचरज और दर्द में
खुले आसमानों और तूफ़ानों में

इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि मैं पास आऊँ या दूर चले जाऊँ
मेरा राज्य रोशनी में है
और पृथ्वी मेरे घर का द्वार है।

भूखा

वह उकेरता है भूख अपनी किताब में,
सितारे और सड़कें,
और भर देता है पन्ने को
वायु से बने रूमाल से
और हम देखते हैं एक प्यारे सूर्य
को पलकें झपकाते हुए
और हम देखते हैं गोधूलि-वेला।


अदूनिस सीरिया के प्रख्यात कवि हैं। उनका बहुत गहरा प्रभाव अरबी कविता पर पड़ा है। उनकी यहाँ प्रस्तुत कविताएँ अरबी से ख़ालेद मत्तावा कृत अँग्रेज़ी अनुवाद पर आधृत हैं। ये कविताएँ अदूनिस की कविताओं के अँग्रेज़ी चयन में प्रकाशित हैं। राहुल तोमर हिंदी कवि-लेखक और अनुवादक हैं। विश्व कविता के अनुवाद का यह उनका पहला प्रयत्न है। वह इंदौर में रहते हैं। उनसे tomar.ihm@gmail.com पर बात की जा सकती है। अदूनिस का एक साक्षात्कार यहाँ पढ़ें : ‘एक रचनाकार कभी क्रांतिकारियों जैसा नहीं हो सकता’

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